मीरा नायर की फिल्म ‘मॉनसून वेडिंग’ से अपनी अभिनय यात्रा शुरू करने वाली अभिनेत्री तिलोत्तमा शोम ने स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं की फिल्मों ‘शैडोज ऑफ टाइम’, ‘द वेटिंग सिटी’, ‘टर्निंग 30’ और ‘सर’ से सिनेमा में अपनी खास जगह बनाई। फिल्म ‘सर’ के लिए वह फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीत चुकी हैं। तिलोत्तमा इन दिनों नेटफ्लिक्स की सीरीज ‘कोटा फैक्ट्री’ के तीसरे सीजन में केमिस्ट्री टीचर पूजा दीदी के किरदार में नजर आ रही हैं। सीरीज के मुख्य किरदारों जितेंद्र कुमार और तिलोत्तमा से ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने एक खास मुलाकात की। यहां पढ़िए इस वीडियो इंटरव्यू में तिलोत्तमा से हुए सवालों पर मिले उनके जवाबों के कुछ अंश...
टीचिंग एक नोबल प्रोफेशन है जिसमें एक आदमी सीखने के बाद जीवन भर बांटता ही रहता है। आपको जब टीचर का रोल मिला तो आपके अपने कौन से टीजर उस समय जहन में आए होंगे, जिन्होंने आपको बहुत कुछ सिखाया?
मैं बहुत लकी हूं क्योंकि मेर लाइफ में ऐसे बहुत सारे टीचर्स हैं। स्कूल के दौरान मेरी एक हिस्ट्री टीचर थीं पूर्णिमा गर्ग। हमें नहीं पता था कि वो हमसे प्यार करती थीं या नहीं लेकिन वह अपने विषय से बहुत प्यार करती थीं और चूंकि वह अपने विषय इतिहास से बहुत प्यार करती थीं लिहाजा वह हमें ये सिखा सकीं कि एक छात्र के तौर पर इतिहास सिर्फ वही नहीं है जो किताबों में हैं...
..सिर्फ नाम और साल याद कर लेना इतिहास नहीं है।
ये सिर्फ एक नजरिया है इतिहास को देखने का। सिर्फ एक संस्कऱण। ऐसे बहुत सारे इतिहास हैं। मौखिक इतिहास हैं जैसे कहानियां, जिसको जितना पता रहा होगा, उसने उतना लिख दिया अगर आफ बुद्धिज्म में देखें कि वो कैसे लिखा गया है, दस आई हर्ड कि मैंने ऐसे सुना।
हां, ये बहुत रोचक बात है कि हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी, पुराणों में भी है कि शिव पार्वती को सुना रहे हैं..काकभुशुण्डि गरुड़ को सुना रहे हैं..सब एक दूसरे को सुना ही रहे हैं..तो ये पूरा विचार ही बहुत रोचक है कि यहां कुछ भी तयशुदा नहीं है। किसी एक बात को कहने के समझने के बहुत सारे विचार बिंदु हो सकते हैं तो ये बहुत दिलचस्प था हमारे जैसे युवाओं के लिए कि जो कुछ भी हम पढ़ रहे हैं, वो तो सिलेबस है लेकिन हमारे एनसीईआरटी को ये नहीं पता कि इतिहास तो और भी बहुत कुछ है इससे बाहर भी है और इतिहास के साथ भाषा का क्या रिश्ता है इतिहास के साथ विज्ञान का क्या रिश्ता है..
ठीक है हिस्ट्री से अब केमिस्ट्री पर आते हैं कितना कठिन रहा होगा आपको कोटा फैक्ट्री के तीसरे सीजन में हाइड्रोजन की लव स्टोरी समझाना?मैं साइंस की स्टूडेंट थी 12वीं तक। बायो, केमिस्ट्री और फिजिक्स की ही पढ़ाई की और मुझे इस कॉम्बीनेशन से प्यार भी था। प्यार इसलिए कि मेरे पिता के एक मित्र बहुत ही अच्छे भौतिकशास्त्री थे। मेरे माता पिता को मुझसे पढ़ाई को लेकर कोई उम्मीदें नहीं थी लेकिन पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में ये बात घर कर गई कि मैं पढ़ाई में अच्छी नहीं हूं। मैं समझ नहीं पा रही थी। मुझे चीजें याद नहीं रहती थी। हमें हर चार साल में जगह बदलनी होती थी क्योंकि पापा एयरफोर्स में थे तो पढ़ाई का माध्यम भी बदल जाता था..

...हम ‘कोटा फैक्ट्री’ में आपके किरदार के पढ़ाने के तरीके पर बात कर रहे थे..हां, मैं उसी का जवाब देने की कोशिश कर रही हूं। अध्ययन के मामले में मुझे बहुत ही कमजोर छात्र माना जाता था। मुझे खुद से कोई बेहतरी की उम्मीद नहीं थी मेरे माता पिता को भी मुझसे कोई उम्मीद नहीं थी। लेकिन, जब मैं अपने पापा के इन मित्र से मिली। उन्हें सितार बजाना बहुत पसंद था तो जब मैं उनके पास पढ़ने जाती तो वह कक्षा की शुरुआत सितार वादन से करते। फिर खुद ही जाकर चाय बनाते और फिर बागवानी करते समय वह मुझे कुछ सूत्र समझाना शुरू करते और तब मुझे ये एहसास होना शुरू हुआ कि मुझे तो फिजिक्स से प्यार हो रहा है। क्यों वह इतने आराम से वह सब कुछ कर रहे थे? छात्रों के बारे में जो हम ये धारणा बना लेते हैं कि ये इस विषय में तेज और इस विषय में कमजोर है तो कई बार ये कमजोरी बस किसी अच्छे शिक्षक का इंतजार कर रही होती है।